इसलिए मनाई जाती है “इगास” बग्वाल। किसी भी राज्य की लोक संस्कृति एवं लोक परम्परा उस राज्य की आत्मा होती है, “मुख्यमंत्री”, कार्यक्रम में हरक सिंह भी जमकर थिरके।

इसलिए मनाई जाती है “इगास” बग्वाल। किसी भी राज्य की लोक संस्कृति एवं लोक परम्परा उस राज्य की आत्मा होती है, “मुख्यमंत्री”, कार्यक्रम में हरक सिंह भी जमकर थिरके।

देहरादून इस साल पूरे उत्तराखंड में इगास चर्चा का विषय और यादगार बन गया  है क्योंकि पहली बार उत्तराखंड के पारंपरिक लोकपर्व इगास पर प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है हालाँकि इगास आज यानि रविवार को है लेकिन

देहरादून

इस साल पूरे उत्तराखंड में इगास चर्चा का विषय और यादगार बन गया  है क्योंकि पहली बार उत्तराखंड के पारंपरिक लोकपर्व इगास पर प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है हालाँकि इगास आज यानि रविवार को है लेकिन छुट्टी रविवार होने के कारण सोमवार को है। राज्यसभा सांसद और बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी भी पिछले कई वर्षों से इगास को लेकर मुहिम छेड़े हुए थे। उनकी मुहिम पर मुख्यमंत्री ने मुहर लगाते हुए इगास के लिए अवकाश की घोषणा की, ताकि सभी उत्तराखण्डी अपने इस पारम्परिक त्योहार को धूमधाम से मना सके। वहीँ आज उत्तराखंड के अनेक जगहों में सार्वजानिक रूप से भी इगास पर्व मनाया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देर रात रिंग रोड लाडपुर में आयोजित राज्य के लोक पर्व इगास बग्वाल (बूढ़ी दीपावली) कार्यक्रम में शामिल हुए। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर सभी को इगास की बधाई देते हुए कहा कि हमारी लोक परम्परा देवभूमि की संस्कृति की पहचान है। उन्होंने कहा कि किसी भी राज्य की लोक संस्कृति एवं लोक परम्परा उस राज्य की आत्मा होती है, इसमें इगास का पर्व भी शामिल है। इस दौरान कार्यक्रम में पहुंचे मंत्री हराक सिंह रावत भी जमकर थिरके।

इगास का ये है इतिहास 

उत्तराखंड में दीपावली के 11 दिन बाद लोकपर्व इगास बग्वाल मनाई जाती है। इगास को लेकर लोगों की कई पौराणिक मान्यताएं और कहानियां हैं। पहली मान्यता के अनुसार भगवान राम के बनवास के बाद अयोध्या पहुंचने पर लोगों ने दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। लेकिन उत्तराखंड में भगवान राम के पहुंचने की खबर दीपवाली के ग्यारह दिन बाद मिली थी तब उसी दिन दीपोत्सव करके खुशियां मनाई गई। इसके साथ ही दूसरी मान्यता के अनुसार एक बार तिब्बत युद्ध में वे इतने उलझ गए कि दिवाली तक वापस श्रीनगर गढ़वाल नहीं पहुंचे तो सबने शंका हुई कि कहीं युद्ध में मारे न गए हों, तब उस वक्त दिवाली नहीं मनाई गई। लेकिन दिवाली के कुछ दिन बाद माधो सिंह की युद्ध विजय और सुरक्षित होने की खबर श्रीनगर गढ़वाल पहुंची। तब राजा की सहमति पर एकादशी के दिन दिवाली मनाने की घोषणा हुई। तब से इगास बग्वाल गढ़वाल में लोक पर्व बन गया। इसी दिन लोगों ने खुशी के दीये जलाए, गॉव के पारंपरिक पकवान उड़द की दाल की पकोड़ी,स्वांले बनाये, और भैला खेला। एक और दंतकथा के मुताबिक ये भी कहा जाता है कि टिहरी जिले के चंबा का एक व्यक्ति भैला बनाने के लिए लकड़ी लेने जगंल गया था। वो व्यक्ति दीपावली के दिन घर नहीं लौटा था। काफी खोजबीन के बाद भी उस व्यक्ति का कहीं पता नहीं लगा तो ग्रामीणों ने दीपावली नहीं मनाई। लेकिन 11 दिन बाद वो व्यक्ति गांव वापस लौटा था। इस वजह से गांव वालों ने उस दिन ही इस बग्वाल को मनाया था। तब से इगास बग्वाल के दिन भैला खेलने की परंपरा शुरू हुई। इसके अलावा कुछ लोग इसकी कहानी को महाभारत से भी जोड़ते हैं। कहा जाता है कि एक बार दीपावली के दिन पांडवों में भीम मौजूद नहीं थे। वो एक दुष्ट का संहार करने के लिए गए थे। आखिरकार जब भीम वापस लौटे तो पांडवों ने इस दिन दीपावली मनाई थी। गढ़वाल के कई इलाकों में इगास बग्वाल को भीम दीवाली के नाम से भी जाना जाता है। इगास बग्वाल के दिन भैला बनाया जाता है और स्थानीय देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है।

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