ऋषिकेश उत्तराखंड में भी अब जटिल से जटिल बिमारियों का इलाज अब संभव हो गया है जी हाँ ये सब सुविधाएँ अब उत्तराखंड के ऋषिकेश एम्स में संभव है। अपने स्थापना के बाद से ही धीरे धीरे असाध्य बिमारियों के इलाज की लेटेस्ट तकनीक एम्स
ऋषिकेश
उत्तराखंड में भी अब जटिल से जटिल बिमारियों का इलाज अब संभव हो गया है जी हाँ ये सब सुविधाएँ अब उत्तराखंड के ऋषिकेश एम्स में संभव है। अपने स्थापना के बाद से ही धीरे धीरे असाध्य बिमारियों के इलाज की लेटेस्ट तकनीक एम्स ऋषिकेश उपलब्ध करवा रहा है। दरसल जिस जटिल सर्जरी की हम आज बात कर रहे है, वो फेफड़ों में मांशपेशियों के असामान्यतौर से बढ़ जाने के कारण पिछले 3 माह से ऑक्सीजन सपोर्ट पर चल रही एक 34 वर्षीया महिला जो अब बिना किसी परेशानी के तीन मंजिले भवन की सीढ़ियां चढ़ने में सक्षम है। यह सब संभव हुआ है एम्स के अनुभवी शल्य चिकित्सकों की मेहनत से। महिला को “लिम्फैन्जियो-लेओ-मायोमाटोसिस” नामक बीमारी थी। एम्स,ऋषिकेश के चिकित्सकों ने महिला के चेस्ट की सफलतम जटिल थोरेसिक सर्जरी कर उसे नया जीवन दिया है। एम्स निदेशक, पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत ने बताया कि ऐसे जटिल ऑपरेशनों में एजुकेशन और स्किल को साझा करने से परिणाम बेहतर आते हैं। उन्होंने बताया कि छाती रोगों से संबंधित थोरेसिक सर्जरी के लिए एम्स ऋषिकेश में उच्च अनुभवी विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम उपलब्ध है। उन्होंने यह भी कहा कि मरीजों को विश्वस्तरीय मेडिकल तकनीक आधारित बेहतर ट्रीटमेंट उपलब्ध कराना एम्स की प्राथमिकता है। रोगी की जान बचाने के लिए जोखिम उठाकर की गई इस सफल सर्जरी के लिए उन्होंने चिकित्सकों की टीम को बधाई दी।
मुजफ्फरनगर निवासी एक 34 वर्षीया महिला करीब 10 वर्षों से सांस लेने की परेशानी से जूझ रही थी। दिक्कतें बढ़ने लगी तो 3 माह पूर्व उसका जीवन ऑक्सीजन पर निर्भर हो गया। इतना ही नहीं खांसी के दौरान उसे खून आने की शिकायत भी शुरू हो गई। इलाज के लिए उसने मुजफ्फरनगर और मेरठ के बड़े अस्पतालों के चक्कर लगाए लेकिन बीमारी का पर्याप्त उपचार नहीं होने पर महिला एम्स ऋषिकेश की इमरजेंसी पहुंची। जांचें आगे बढ़ीं तो पता चला कि महिला “लिम्फैन्जियो-लेओ-मायोमाटोसिस” नाम की दुर्लभ बीमारी से ग्रसित है और इसकी वजह से उसके फेफड़ों में ऑक्सीजन पहुंचने में रुकावट हो रही है। महिला की स्थिति यह हो चुकी थी कि उसको दैनिक कार्यों के लिए भी परेशानी आ रही थी। इस बाबत एम्स के ट्रॉमा सर्जन एवं जनरल थोरेसिक सर्जरी प्रोग्राम के इंचार्ज डॉ. मधुर उनियाल ने बताया कि यह बीमारी बहुत ही दुर्लभ किस्म की है और दस लाख लोगों में से किसी एक को होती है। इस बीमारी के कारण फेफड़ों की अरेखित मांसपेशियां असमान्यरूप से बढ़ जाती हैं। परिणामस्वरूप सिस्ट बनने के साथ साथ फेफड़ों के स्वस्थ ऊतकों पर भी अनावश्यक दबाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि ऐसे में जरूरी था कि फेफड़ों से इन अप्राकृतिक ऊतकों को हटाया जाए। इसके लिए रोगी की पूरी छाती की सर्जरी करने का जोखिम भरा निर्णय लिया गया। डॉ. मधुर उनियाल ने बताया कि महिला की इस जटिल थोरेसिक सर्जरी में एम्स दिल्ली के चेस्ट सर्जन प्रोफेसर विप्लव मिश्रा का महत्वपूर्ण सहयोग रहा। सर्जरी में चार घंटे से अधिक का समय लगा। स्वस्थ होने के बाद अब रोगी को बीते रोज अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी है। डॉ. विप्लव एवं डॉ. मधुर के अलावा सर्जरी टीम में डॉ. अजय कुमार, डॉ. अवनीश एवं डॉ. रूबी भी शामिल थे। उन्होंने बताया कि जितनी जटिल यह सर्जरी थी, उतनी ही जटिल इसमें उपयोग की गई निश्चेतना की प्रक्रिया भी थी। इसका श्रेय उन्होंने ऐनेस्थेसिया विभाग की डॉ. भावना गुप्ता एवं टीम को दिया। उन्होंने बताया कि पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के अनुभवी डॉक्टरों की वजह से इस बीमारी का पता चल पाया है। उन्होंने कहा कि एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत के मार्गदर्शन की वजह से न्यूनतम समय में ही एम्स में इस प्रकार की जटिलतम सर्जरी की जाने लगी हैं।
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